आज बच्चन परिवार देश के उन परिवारों में गिना जाता है जिनके पास दौलत, शोहरत और खूब रसूख है। मगर अमिताभ बच्चन से महज दो पीढ़ी पहले इस परिवार की स्थिति बहुत अच्छी नहीं थी।
हालात इतने बुरे थे कि बिग-बी के दादाजी को अपने बेटे हरिवंशराय बच्चन के जन्म का कर्ज दस साल तक चुकाना
पड़ा था। इसके लिए उन्होंने दस रुपए प्रतिमाह किश्त बांधी थी और उसे हर माह बिना नागा चुकाते रहे, तब जाकर कर्ज पट सका।
किस्सा सन् 1907 का है। अमिताभ बच्चन के दादाजी प्रताप नारायण व दादी सुरसती को बच्चे नहीं हो रहे थे। दो बच्चे तो जन्म से पहले गर्भ में ही मृत्यु को प्राप्त हो गए।
ऐसे में घर निराशा से भर गया। मगर कुछ माह बाद फिर खुशियां लौटीं और आखिरकार एक बेटी हुई। ये भी बड़ी मुश्किल से जीवित बच सकीं इसलिए भगवान की देन मानकर नाम रखा गया भगवानदेई। उनके बाद दो बच्चे और जन्मे लेकिन उनकी भी मृत्यु हो गई।
इससे प्रताप नारायण और सुरसती बहुत दुखी व चिंतित हो गए। तब एक पंडितजी रामचरण शुक्ल ने उन्हें सलाह दी कि अगली बार जब पत्नी गर्भवती हो तो वे हरिवंश पुराण सुनें। इसके प्रताप से बच्चा जीवित भी रहेगा और स्वस्थ भी।
सुरसती जब फिर गर्भवती हुईं तो प्रताप नारायण ने हरिवंश पुराण सुनने का व्रत ले लिया। वे अर्धरात्रि 3 बजे उठकर चार मील पैदल चलकर गंगा स्नान करने जाते और लौटकर पूजा-पाठ करते।
हरिवंश पुराण की कथा सुनाने के लिए उन्होंने परिवार के ही एक पुरोहितजी से निवेदन किया। पुरोहितजी रोज प्रताप नारायण और सुरसती को कथा सुनाते। मगर एक दिन संकट पैदा हो गया।
पंडितजी ने दक्षिणा स्वरूप एक हजार रुपए मांग लिए। प्रताप नारायण की इतनी हैसियत नहीं थी और उस जमाने में एक हजार रुपए बहुत बड़ी रकम हुआ करती थी।
इसी बीच सुरसती ने आश्चर्यजनक रूप से छठवीं संतान के रूप में एक स्वस्थ बेटे को जन्म दिया। चूंकि बेटे के गर्भ में रहते मां को हरिवंश पुराण सुनाई गई थी, इसलिए नाम रखा हरिवंशराय अर्थात हरि के वंश का बालक।
स्वस्थ बालक के जन्म लेने पर परिवार में अपार खुशी छाई और पिता प्रताप नारायण ने तय किया कि वे पुरोहितजी को एक हजार रुपए दक्षिणा देंगे। मगर चूंकि उस समय उनके पास जमापूंजी के नाम पर घर में रखा आटा-दाल
और कुछ जरूरी सामान ही था, इसलिए उन्होंने पुरोहितजी को एक वचन दिया।
इस वचन के तहत उन्होंने एक कागज की पर्ची में 'एक हजार रुपए" लिखा और पुरोहितजी को सौंपते हुए हर माह दस रुपए देने की किश्त बांध ली। वे वचन के पक्के थे इसलिए हर माह दस रुपए चुकाते रहे।
अंतत: किश्तों में दिया जा रहा पूजा-पाठ का ये कर्ज तब पूरा हुआ, जब हरिवंशराय बच्चन 10 साल के हो गए।
http://naidunia.jagran.com/national-story-of-amitabh-bachchan-grand-father-906941
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